खुद पर करो विश्वास

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यदि स्वाभिमान पैदा करना है तो हरदिन खुद को प्यार करें।कोई व्यक्ति, जगह या कोई चीज तब तक हम पर
हावी नहीं हो सकती, जब तक हम उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं देंगे।
# मैंने भले ही अतीत में बुरे विकल्प अपनाए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बुरा आदमी हूं और न ही मैं इन विकत्पों में फंस गया हूं ,खुद पर करो विश्वास ।

ज्यादातर लोग 'स्वाभिमान-निर्माण' का रोजाना अभ्यास नहीं कर पाते।  यह वह बीज है, जो तभी फलता-फूलता है, जब उसे सींचा जाता है। अब
सवाल है कि स्वाभिमान पैदा करना भला शुरू कैसे किया जाए? आत्म-सम्मान कहें, आत्म-प्रेम या फिर आत्म- मूल्य। इसकी शुरुआत इस सोच के साथ होती है कि आप प्यार करने के लायक हैं; खुद से प्यार करने के लायक हैं। सच यही है कि जीवन में हम ज्यादातर जिन चीजों से लड़ते हैं, उनमें से एक अपने प्रति ईमानदार होना भी है। अतीत की ठेस को हम छिपाना पसंद करते हैं, ताकि फिरसे चोट पहुंचने से खुद को बचा सकें | खुद से प्यारकरने की वकालत करने की एक बड़ी वजह यही है कि जब हम ऐसा करना शुरू करते हैं, तो हम ऐसी सोच पैदा करने लगते हैं, जो हमें खुद के प्रति ईमानदार होने के करीब लाती है। जाहिर है, यदि कर रहे हैं, या बातें बना रहे हैं, तो यकीनन आप अपने होने के उद्देश्य को नकार रहे हैं। खुद को खुशी से वंचित कर रहे हैं। खुद से प्यार करके ही पता चलता है कि आप कौन हैं ? खुद पर भरोसा करना शुरू करें कई बार हम खुद के प्रति अनिश्चित होते हैं।

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अपने फैसलों की आलोचना करते रहते हैं या अपने आसपास मौजूद अन्य लोगों की राय पर फैसले तय करने लगते हैं। खुद पर भरोसा करने की बजाय हम दूसरों पर यह विश्वास आखिर क्यों करते हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा मानस भी अद्वितीय है, सुंदर है। एक ऐसी दुनिया में, जहां किसी को आंकने या दूसरों से तुलना करने की इतनी जल्दबाजी हो, वहां सच्चे आत्म को दबाना आसान हो सकता है। हम अपनी संस्कृति या माता-पिता से यह सीखते हैं और लगातार खुद को आंकना शुरू कर देते हैं। यह इससे हम अनवरत किसी ऐसी चीज का पीछा कर रहे होंगे, जो हमारे खास होने को झुठलाती है।
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आपने प्रति ईमानदार होने के लाभ व आत्म-सम्मान के निर्माण का कोई सही या गलत तरीका नहीं होता है। इसमें अंदर का बचपन मार्गदर्शक का काम करता है। उस पर विश्वास करें। खुद से प्यार करें और उस रूप के प्रति सच्चे रहें, जो आपका सर्वश्रेष्ठ है। स्वयं के प्रति सच्चा होना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हम रोजाना करते हैं। और यह कतई न सोचें कि चूंकि आपने गलती की है, इसलिए आप विफल हैं। जीवन एक अनुभव है, जो हमें रोजाना सिखाता रहता है । कभी-कभी हम सही फैसले लेते हैं, तो कभी नहीं । इससे मायूस नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम इससे सीख रहे होते हैं। गलत चर्चाओं को अपने ऊपर हावी न होने दें और खुद पर भरोसा रखें । जब आप ऐसा करते हैं, तो आपको अपने अंदर कई तरह के बड़े बदलाव दिखेंगे। जैसे-

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1 संवेदनशीलता
जब हम हर स्थिति में खुद से प्यार करते हैं, तो हम यह सीखते हैं कि कब  हम सर्वश्रेष्ठ होते हैं। हम अपने और बनते हैं और अतीत के फैसलों के आधार पर खुद का आंकना बंद कर देते हैं। अपनी गलतियों से हम सीखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं | हमारे लिए जीवन के बदलाव को स्वीकार करना कहीं ज्यादा आसान हो जाता है।

2. निश्चितता
जब हम अपने सच्चे स्व को व्यक्त करने लगते हैं, तो चिंताएं कम होने लगती हैं और कठिनाइयों को परे झटकना शुरू कर देते हैं। खुद को कोसना समय के साथ कम होने लगता है और भविष्य को लेकर हमारी आशंकाएं छीजने लगती हैं। हम वर्तमान में सहज होने लगते हैं और अतीत को आस-पास फटकने नहीं देते। हमारा पूरा ध्यान वर्तमान पर होता है, जिससे हमें निश्चितता मिलती है, फिर परिस्थिति कैसी भी रहे।

3. मजबूती
पल-दर-पल सच्चा होना हमें साहसी और दिलेर बनाता है । जब चुनौतियां आती हैं, तो हम बेशक दबाव महसूस कर सकते हैं, लेकिन उसका सफलतापूर्वक सामना भी करते हैं। क्योंकि हमने यही सीखा होता है कि अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए खुद पर भरोसा रखना चाहिए, फिर चाहे हम सफल हों या विफल!

4. सकारात्मकता
भीतरी आवाज पर भरोसा करते ही दूसरों के साथ हमारे रिश्ते बदलने लगते हैं। हम अपने आसपास उन लोगों को महसूस करने लगते हैं, जो मदद को हमेशा तैयार रहते हैं या हमें प्रोत्साहित करते हैं। हम ऐसे लोगों के साथ ज्यादा वक्‍त नहीं बिताते, जो हमारी ऊर्जा बर्बाद करते हैं। हम उनकी तरफ आकर्षित  होने लगते हैं, जो हमें सर्वश्रेष्ठ बनने को प्रेरित करते हैं।

5. जरूरतों का पूरा होना
खुद के प्रति सच्चे होते ही हमारा जीवन सुखद होने लगता है | हमारी जरूरतें पूरी होने लगती हैं, क्योंकि हम जो कुछ कर रहे होते हैं, उस पर हमें भरोसा होता है हम जानते हैं कि हमें खुश रहना चाहिए। इससे हमारा अपने सपनों पर विश्वास बढ़ता है ।
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आत्म-सम्मान पैदा करने की तीन आदतें 
1.पहली है, डायरी लिखना। डायरी में अपने अनुभवों को यह लिखें कि उनसे आपको कैसा लगा और क्‍या आपको यह लगता है कि अंतरात्मा ने जैसा कहा, उसी तरह आपने उनसे निपटने की कोशिश की? अगर आप किसी बात को लेकर परेशान हैं, तो क्या आपने उसका सामना किया या उसे छिपाया? जितना अधिक आप डायरी लिखेंगे और यह पता करने की कोशिश करेंगे कि आपने कब अपना सर्वश्रेष्ठ दिया, तो उतना अधिक आप सच को व्यक्त करने के करीब पहुंचने लगेंगे।

2 .दूसरी है, ध्यान लगाने का अभ्यास करना। अपने विचारों को संयत रखने का इससे बेहतर कोई दूसरा तरीका नहीं है। इससे आत्म-सम्मान एक आदत में ढल जाता है और आप हर दिन खुद से प्यार करने का अभ्यास करने लगते हैं।

3.तीसरी है सुनने का अभ्यास करना। अपने अंतर्निहित भय को व्यक्त करने का बेहतर उपाय है, अपने भीतर झांकना और अपनी सच्ची भावनाओं को व्यक्त करना। ऐसा करने से डर से मुकाबला करना भी आसान हो जाता है। कई लोग सोचते हैं कि आत्म-सम्मान सबसे शक्तिशाली औजार है। यह वाकई है, लेकिन तभी, जब आप इसको सुनने और समझने से जोड़ देते हैं।

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